ayurved-vaghbhatt-अष्टांङ्ग ह्रदयम्-सम्पूर्ण. डॉ. ब्रह्मानंद त्रिपाठी (ashtang Hirdyam Dr Brahmanand Tripathi) csp

775.00

आयुर्वेदिक वाङ्मय का इतिहास अत्यंत प्राचीन तथा ब्रह्मा, इंद्र आदि देवों से सम्बन्धित होने से अति गौरवपूर्ण है। आयुर्वेद के ऋषि कृत ग्रंथों में वर्तमान में चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भेल संहिता, काश्यप संहिता प्रसिद्ध हैं। वहीं मध्यकालीन विद्वानों में नागार्जुन, दृढबल, चक्रपाणि और वाग्गभट् का नाम प्रसिद्ध है। इन सबमें भी वाग्गभट् की अष्टाङ्गहृदयम् को उच्च स्थान प्राप्त है। इसका अध्याय विभाग पूर्व ऋषियों की तरह आठ अंगों – सूत्रस्थान, शरीरस्थान, निदानस्थान, चिकित्सास्थान, कल्पस्थान, उत्तरस्थान में किया गया है।

इस ग्रन्थ का प्रचार चीनी यात्री इत्सिंग ने भी किया था। इसमें अनेको प्रयोग चरक और सुश्रुत से ही लिए गये हैं। इसमें हृदय रोगों का विस्तृत विवेचन है तथा चरक आदि के समान ही रोग के कारण, निवारण और सावधानियों पर विचार उद्धृत किये गये हैं। इसके प्रथम अध्याय के निम्न सूत्र “आयुर्वेदोपदेशेषु विधेय: परमादर:” से स्पष्ट है कि वाङ्गभट् की यह रचना समस्त मानव समाज के कल्याण के लिए थी किसी मत विशेष के लिए नहीं।

प्रस्तुत् पुस्तक अष्टाङ्गहृदयम् के हिन्दी भाषानुवाद में विस्तृत व्याख्याएँ हैं। इससे पाठकगण जो संस्कृत से अनभिज्ञ हैं वे भी लाभान्वित होंगे। अष्टांगहृदयम् के अनेको पाठ-भेद उपलब्ध हैं। इस ग्रन्थ में निर्णयसागरीय प्रति के पाठ को मूल मानकर लिखा गया है तथा वहाँ भी जो पाठ खंडित हैं उन्हें यथाबुद्धिबल से शुद्ध किया गया है।

इस ग्रन्थ के अन्य व्याख्याकारों के भी सन्दर्भ यथा-स्थान दे कर ग्रन्थ की प्रमाणिकता को स्पष्ट किया है। ग्रन्थ के दुरूह विषयों को यथा-सम्भव सरलता से समझाने का प्रत्यन्न किया गया है। औषध निर्माण प्रसंग में जहाँ-जहाँ आवश्यक समझा हैं वहाँ-वहाँ औषध द्रव्य परिमाण तथा उसके निर्माण की विधि उल्लेखित की गयी है। अन्त में श्लोकों का वर्णमाला क्रमानुसार श्लोकानुक्रमणिका भी दी गई है।

इस ग्रन्थ का आयुर्वेद के शिक्षकों और विद्यार्थियों को अवश्य अध्ययन करना चाहिए साथ ही सामान्यजन भी इसके अध्ययन से अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकेंगे।

 

Description

आयुर्वेदिक वाङ्मय का इतिहास अत्यंत प्राचीन तथा ब्रह्मा, इंद्र आदि देवों से सम्बन्धित होने से अति गौरवपूर्ण है। आयुर्वेद के ऋषि कृत ग्रंथों में वर्तमान में चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भेल संहिता, काश्यप संहिता प्रसिद्ध हैं। वहीं मध्यकालीन विद्वानों में नागार्जुन, दृढबल, चक्रपाणि और वाग्गभट् का नाम प्रसिद्ध है। इन सबमें भी वाग्गभट् की अष्टाङ्गहृदयम् को उच्च स्थान प्राप्त है। इसका अध्याय विभाग पूर्व ऋषियों की तरह आठ अंगों – सूत्रस्थान, शरीरस्थान, निदानस्थान, चिकित्सास्थान, कल्पस्थान, उत्तरस्थान में किया गया है।

इस ग्रन्थ का प्रचार चीनी यात्री इत्सिंग ने भी किया था। इसमें अनेको प्रयोग चरक और सुश्रुत से ही लिए गये हैं। इसमें हृदय रोगों का विस्तृत विवेचन है तथा चरक आदि के समान ही रोग के कारण, निवारण और सावधानियों पर विचार उद्धृत किये गये हैं। इसके प्रथम अध्याय के निम्न सूत्र “आयुर्वेदोपदेशेषु विधेय: परमादर:” से स्पष्ट है कि वाङ्गभट् की यह रचना समस्त मानव समाज के कल्याण के लिए थी किसी मत विशेष के लिए नहीं।

प्रस्तुत् पुस्तक अष्टाङ्गहृदयम् के हिन्दी भाषानुवाद में विस्तृत व्याख्याएँ हैं। इससे पाठकगण जो संस्कृत से अनभिज्ञ हैं वे भी लाभान्वित होंगे। अष्टांगहृदयम् के अनेको पाठ-भेद उपलब्ध हैं। इस ग्रन्थ में निर्णयसागरीय प्रति के पाठ को मूल मानकर लिखा गया है तथा वहाँ भी जो पाठ खंडित हैं उन्हें यथाबुद्धिबल से शुद्ध किया गया है।

इस ग्रन्थ के अन्य व्याख्याकारों के भी सन्दर्भ यथा-स्थान दे कर ग्रन्थ की प्रमाणिकता को स्पष्ट किया है। ग्रन्थ के दुरूह विषयों को यथा-सम्भव सरलता से समझाने का प्रत्यन्न किया गया है। औषध निर्माण प्रसंग में जहाँ-जहाँ आवश्यक समझा हैं वहाँ-वहाँ औषध द्रव्य परिमाण तथा उसके निर्माण की विधि उल्लेखित की गयी है। अन्त में श्लोकों का वर्णमाला क्रमानुसार श्लोकानुक्रमणिका भी दी गई है।

इस ग्रन्थ का आयुर्वेद के शिक्षकों और विद्यार्थियों को अवश्य अध्ययन करना चाहिए साथ ही सामान्यजन भी इसके अध्ययन से अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकेंगे।

 

Additional information

Weight 2 kg

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “ayurved-vaghbhatt-अष्टांङ्ग ह्रदयम्-सम्पूर्ण. डॉ. ब्रह्मानंद त्रिपाठी (ashtang Hirdyam Dr Brahmanand Tripathi) csp”