वेदविज्ञान आलोक ४ भागों में संपूर्ण आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक (A VEDIC THEORY OF UNIVERSE, A Big challange of ModernTheortical Physics by Ach.Agnivrat Naishtik)

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इस ग्रन्थ पर लगने वाले हिंसक और अश्लील तथा प्रक्षेप के आरोपात्मक कलङ्कों को आचार्य अग्निव्रत जी नैष्ठिक जी ने अपने प्रस्तुत भाष्य “वेदविज्ञान आलोक” से मुक्त करने का एक उत्तम प्रयास किया है। इस ग्रन्थ द्वारा आचार्य जी ने लगभग हजारों वर्षों से लुप्त वैदिक विज्ञान को खोज निकाला है जिससे आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्तों की अनेकों समस्याओं का समाधान हो जाता है तथा गलत और काल्पनिक वैज्ञानिक सिद्धान्तों की निवृत्ति हो जाती है। इस ग्रन्थ से जहां महान वैज्ञानिक सिद्धान्त प्रस्फुटित होते हैं वहीं यह ग्रन्थ ईश्वर के वैज्ञानिक स्वरूप और उसकी सृष्टि निर्माण में कार्यशैली को जानने में भी अत्यन्त सहायक है अर्थात् यह ग्रन्थ भौत्तिकवेत्ताओं और अध्यात्मवेत्ताओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है। जहां इस ग्रन्थ के भाष्य में सायण आदि भाष्यकारों ने इसे बूचड़खाना सा बना दिया था वहीं प्रस्तुत भाष्य के द्वारा आप जानेंगे –

Description

वेदों में समस्त ज्ञान – विज्ञान मूलरूप से विद्यमान है। जिसे समझने और समझाने के लिए, उसका मानव हितार्थ उपयोग करने के लिए अनेकों ऋषियों – महर्षियों और विद्वानों देवों ने अपना – अपना योगदान दिया है। वेदों पर अनुसंधान और मनुष्यों में उसके विज्ञान का प्रसार – प्रचार का कार्य महर्षि ब्रह्मा से लेकर महर्षि दयानन्द तक चला है। इन सबने वेदों के व्याख्यान किए है। जिससे कि वेदों का रहस्य सभी मानव जाति के लिए बोधगम्य हो। इनमें वेदों के व्याख्यान ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थ वेदों के साक्षात् व्याख्यान ग्रन्थ होने के कारण वेदों के सर्वाधिक निकट और वेदों की विद्या के प्रकाशक है। इन ग्रन्थों के अध्ययन के बिना वर्तमान में वेद विद्या को समझना असाध्य कार्य है। इन ब्राह्मण ग्रन्थों में भी सर्वाधिक प्राचीन ब्राह्मण ग्रन्थ ऋग्वेद का महर्षि ऐतरेय महीदास जी द्वारा रचित ऐतरेय ब्राह्मण है। इस ग्रन्थ में अनेकों वैज्ञानिक रहस्य हैं, किन्तु वे सभी वैज्ञानिक तत्त्व अति गूढ़ भाषा में विद्यमान है। इस भाषा को न समझ पाने के कारण ही कई विद्वानों ने इस ग्रन्थ का अश्लीलता और हिंसात्मक अर्थ, व्याख्यादि की। उन्हीं विद्वानों की व्याख्याओं को देखकर बिना कुछ गम्भीर विचार किए कुछ आर्य विद्वानों ने इन ग्रन्थों में प्रक्षिप्त की कल्पना भी कर ली। जबकि ये स्थल न तो अश्लील है और न ही हिंसक बल्कि ये विशुद्ध वैज्ञानिक सिद्धान्तों से ओत – प्रोत है।

इस ग्रन्थ पर लगने वाले हिंसक और अश्लील तथा प्रक्षेप के आरोपात्मक कलङ्कों को आचार्य अग्निव्रत जी नैष्ठिक जी ने अपने प्रस्तुत भाष्य “वेदविज्ञान आलोक” से मुक्त करने का एक उत्तम प्रयास किया है। इस ग्रन्थ द्वारा आचार्य जी ने लगभग हजारों वर्षों से लुप्त वैदिक विज्ञान को खोज निकाला है जिससे आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्तों की अनेकों समस्याओं का समाधान हो जाता है तथा गलत और काल्पनिक वैज्ञानिक सिद्धान्तों की निवृत्ति हो जाती है। इस ग्रन्थ से जहां महान वैज्ञानिक सिद्धान्त प्रस्फुटित होते हैं वहीं यह ग्रन्थ ईश्वर के वैज्ञानिक स्वरूप और उसकी सृष्टि निर्माण में कार्यशैली को जानने में भी अत्यन्त सहायक है अर्थात् यह ग्रन्थ भौत्तिकवेत्ताओं और अध्यात्मवेत्ताओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है। जहां इस ग्रन्थ के भाष्य में सायण आदि भाष्यकारों ने इसे बूचड़खाना सा बना दिया था वहीं प्रस्तुत भाष्य के द्वारा आप जानेंगे –

1) Force, Time, Mass, Charge, Space, Energy, Gravity, Graviton, Dark Energy, Dark Matter, Mass, Vacuum Energy, Mediator Particles आदि का विस्तृत विज्ञान क्या है? इनका स्वरूप क्या है? सृष्टि प्रक्रिया में इनका योगदान है?

2) जिन्हें संसार मूल कण मानता है, उनके मूल कण न होने का कारण तथा इनके निर्माण की प्रक्रिया क्या है?

3) अनादि मूल पदार्थ से सृष्टि कैसे बनी? प्रारम्भ से लेकर तारों तक के बनने की विस्तृत प्रक्रिया क्या है? Big Bang Theory क्यों मिथ्या है? क्यों universe अनादि नहीं है, जबकि इसका मूल पदार्थ अनादि है?

4) वेद मन्त्र इस ब्रह्माण्ड में सर्वत्र व्याप्त विशेष प्रकार की तरंगों के रूप में ईश्वरीय रचना है। ये कैसे उत्पन्न होते हैं?

5) इस ब्रह्माण्ड़ में सर्वाधिक गतिशील पदार्थ कौनसा है?

6) गैलेक्सी और तारामंडलों के स्थायित्व का यथार्थ विज्ञान क्या है?

7) वैदिक पंचमहाभूतों का स्वरूप क्या है?

8) संसार में सर्वप्रथम भाषा व ज्ञान की उत्पत्ति कैसे होती है?

9) भौत्तिक और आध्यात्मिक विज्ञान, इन दोनों का अनिवार्य सम्बन्ध क्या व क्यों है?

10) ईश्वर सृष्टि की प्रत्येक क्रिया को कैसे संचालित करता है?

11) “ओम” ईश्वर का मुख्य नाम क्यों हैं? इसकी ध्वनि इस ब्रह्माण्ड में क्या भूमिका निभाती है?

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