Description
हिमालय गाथा (चार)
समाज-संस्कृति
स्वर्ग की कल्पना एक ऊँचे स्थान पर की गई है । पृथ्वी के स्वर्ग पर्वतों पर स्थित थे । हमारे पुराणों से भूगोल वर्णन के समय जिन स्थानों पर स्वर्ग बताए गए हैं, वे सभी पर्वतों पर थे । शंकर का प्रिय कैलास, कुबेर की अलकापुरी, इंद्र की इन्द्रपुरी, सब ऊँचे स्थानों पर अवस्थित थे । गंधमादन पर्वत, कैलास पर्वत तथा मेरु पर्वत के चारों और शीतांत आदि केसर पर्वतों का वर्णन मिलता है, जहाँ धार्मिक पुरुष वास करते थे । ये संपूर्ण स्थान पृथ्वी के स्वर्ग कहलाते थे । इन पर विजय पाने के लिए सभी देव, दानव और मानव प्रयत्न करते रहते ।
पर्वतवासियों से मैदानी सभ्यता का संघर्ष होता रहा । आर्यों ने पर्वतों पर विजय पाने के लिए अनेक प्रयास किए । उन्हें परास्त किया और बार-बार पर्वतों की ओर धकेला । इस सबके बाबजूद भी पार्वती संस्कृति अपने मूल रूप में बनी रही और अनेक बाहरी प्रभावों के बाद आज भी अपने आदि रूप से संरक्षित मिलती है ।
हिमाचल प्रदेश के अनेक भूखड़ों से आज भी वे परंपराएँ विद्यमान हैं, जो एकदम आदि परंपराएँ कही जा सकती है । प्रकृति पूजा में आकाश, भूमि, जल, पाषाण, वनस्पति पूजा आज भी की जाती है । कुछ परंपराएँ गोपनीय ढंग से निभाई जाती हैं, जो अधिक महत्वपूर्ण है ।
आज समाज, पर्वतीय समाज की प्रमुख विशेषता रही है । आज भी जनजातीय समाज जाति और वर्गविहीन है ।
आज संस्कृति पर लेखन कम होता जा रहा है । संस्कृति पर लेखनी बताने वाली में वशिष्ठ एक बिरले साहित्यकार है, जिन्होंने गहरे में जाकर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से समाज का एक चित्र प्रस्तुत किया है । परंपरा की एक अमूल्य थाती शनै:- शनै: समाप्त हो रही है । इसे पिछडी सभ्यता का द्योतक माना जा रहा है। ऐसे में यह कार्य और भी मह्रत्वपूर्ण हो जाता है।
‘हिमालय गाथा’ के प्रस्तुत चौथे खंड मेँ समाज और संस्कृति की सूक्ष्म मान्यताओं, लोकविश्वासों, रीति-रिवाजों और संस्कारगत परंपराओं पर ऐसी दुर्लभ सामग्री दी जा रही है, जो अब मिटने के कगार पर है ।
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