संस्कृत वांग्मय का इतिहास १७ भागों में.-पद्मभूषण आचार्य बलदेव उपाध्याय(Sanskrit Vangmai Ka Brihat Itihas Itihas 17 vols Ach Baldev Upadhyay)

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Description

साहित्य का नाम – संस्कृत-वाङ्मय का बृहद् इतिहास

सम्पादक का नाम – पद्मभूषण आचार्य श्री बलदेव उपाध्याय जी

 

साहित्य समाज का दर्पण होता है, जैसा समाज होता है वैसा ही साहित्य होता है। समाज की वेशभूषा, रूप, रंग और निश्चित ज्ञान उसके साहित्य में वर्तमान रहती है। संस्कृति के उचित प्रसार प्रचार का श्रेष्ठ साधन साहित्य ही है। सभी देशों की अपनी-अपनी संस्कृति है किन्तु भारत की संस्कृति का मूलाधार संस्कृत भाषा है और उसका साहित्य है। यह संस्कृत साहित्य भारतीय समाज के भव्य विचारों का रुचिर दर्पण है। संस्कृत के इन्हीं साहित्यों के प्रचार-प्रसार से लोग अपनी संस्कृति को जानेंगे और उस पर गर्व करेंगे। लोगों तक संस्कृत और इसके साहित्य के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान नें संस्कृत वाङ्मय का बृहद् इतिहास नामक पुस्तक 15 खण्डों में प्रकाशित किया है। इसके प्रथम खण्ड का नाम वेद है जिसका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है –

 

यह खण्ड बीस अध्यायों में है, इस खण्ड में विश्व के प्राचीनतम वाङ्मय, जो भारत में सर्वप्रथम प्रणीत हुआ उसके समग्ररुप का विस्तृत विवेचन लाने का प्रयास किया गया है। इसके प्रथम अध्याय में वैदिक वाङ्मय का आदिकाल अर्थात् मन्त्र काल पर प्रकाश डाला है। द्वितीय अध्याय में कुछ वैदिक मन्त्रों का सङ्कलन किया है। तृतीय अध्याय में वेदों की शाखाओं के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डाला है। चतुर्थ अध्याय में ऋग्वेद की शाखा-संहिता और उसके प्रवचन कर्त्ताओं का उल्लेख किया गया है। पंचम अध्याय में शाकल ऋग्वेद के विभाग और उसके चयन कर्म का वर्णन किया गया है। षष्ठं अध्याय में शाकल ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का वर्णन किया है। सप्तम अध्याय में ऋग्वेद के दार्शनिक सूक्तों को उद्धृत किया है। अष्टम, नवम और दशम अध्याय में यजुर्वेद संहिता, शूक्ल और कृष्ण यजुर्वेदों का वर्णन किया गया है। एकादश अध्याय में सामवेद संहिता, द्वादश अध्याय में अथर्ववेदीय संहिताओं का परिचय है। त्रयोदश अध्याय में ब्राह्मण साहित्य का परिचय दिया है। पंचदश अध्याय में उपनिषदों का वर्णन है। षोडश से अष्टादश अध्याय तक वैदिक गणराज्यों का परिचय है। अष्टादश अध्याय में वैदिक प्रशासनिक व्यवस्था का वर्णन है। एकोनविंश अध्याय में वैदिक समाज और विंश अध्याय में वैदिक आर्थिक जीवन को चित्रित किया है।

 

द्वितीय खण्ड वेदाङ्ग के नाम से है। इस खण्ड में छः वेदाङ्गों यथा – शिक्षा, व्याकरण, कल्प, निरूक्त, छन्द, ज्योतिष का परिचय है। शिक्षाओं के परिचय के अलावा इसमें प्रतिशाख्यों और अनुक्रमणिकाओं का भी परिचय दिया हुआ है।

 

तृतीय खण्ड आर्षकाव्य नाम से है। इस खण्ड़ में दो भारतीय आर्ष काव्य महाभारत और रामायण का उल्लेख किया गया है। इसमें रामायण और महाभारत के रचनाकाल, पात्रों, जीवन शैलियाँ, आख्यानों, राजव्यवस्था और नगरों के नामों का परिचय दिया गया है। इस खण्डं में रामायण पर आधारित विविध भारतीय और विदेशी रचनाओं का भी परिचय दिया गया है।

 

चतुर्थ खण्ड काव्य नाम से प्रकाशित है। इसमें विविध काव्यों का परिचय दिया हुआ है जैसे –

ऐतिहासिक महाकाव्य – इसके अन्तर्गत पद्मगुप्त परिमल के नवसाहसाङ्कचरित, राजतरङ्गिणी, कुमारपालचरित तथा पृथिवीराज रासो आदि काव्यों का वर्णन है।

जैन-संस्कृत-काव्य – इसके अन्तर्गत वराङ्गचरित, चन्द्रप्रभचरित, वर्धमानचरित, पार्श्वनाथचरित आदि का वर्णन है।

कश्मीरी काव्य – इसके अन्तर्गत सुवृततिलक, काव्यप्रकाश, हयग्रीववध, हरविजय आदि का वर्णन किया गया है।

शास्त्रकाव्य – इसमें कविरहस्य, वासुदेवविजय, कुमारपालचरित आदि का वर्णन है।

सन्धानकाव्य – इसमें राघवपाण्डवीय, सप्तसंधान आदि का वर्णन है।

गीतिकाव्य – इसके अन्तर्गत भर्तृहरि के शतक, उत्स का वर्णन है।

सन्देशकाव्य – इसमें पवनदूत, मेघदूत, कोकिलादूत, इन्दुदूत आदि काव्यों का परिचय दिया गया है।

शतककाव्य – इसमें भर्तृहरि के शतक, अमरूक शतक, चण्डीशतक, सूर्यशतक आदि का वर्णन है।

स्तोत्रकाव्य – इसमें शिवस्तुति, अर्धनारीश्वरस्तोत्र, मुकुन्दमाला, त्रिपुरसुन्दरी, गीतगोविन्द आदि का परिचय दिया है।

बौद्धसाहित्य – इसके अन्तर्गत बुद्धचरित्र, चतुःस्तव, अष्टादशश्रीचैत्यस्तोत्र का वर्णन है।

दक्षिणभारतीय स्तोत्र – इसमें स्तोत्रसमुच्चय, अम्बिकात्रिशती, आर्यापञ्चदशी, मङ्गलाष्टकस्तोत्र का वर्णन है।

 

 

संस्कृत-वाङ्मय का बृहद् इतिहास का पञ्चम-खण्ड गद्य नाम से है, इसके सात प्रकरण है – गद्यकाव्य, चम्पूकाव्य, कथा साहित्य, लौकिक संस्कृत साहित्य की कवयित्रयाँ, परिशिष्ट अंश, नीतिशास्त्र का इतिहास, अभिलेखीय साहित्य है।

उपर्युक्त सातों प्रकरणों में गद्यलेखकों और उनकी रचनाओं का वर्णन किया गया है।

 

इस वाङ्मय के षष्ठं खण्ड के पश्चात् सप्तमं खण्ड आधुनिक संस्कृत साहित्य के इतिहास नाम से है जिसमें न केवल आधुनिक काल के संस्कृत रचनाकारों का समावेश किया है प्रत्युत समकालीन संस्कृत के रचनाकारों के साहित्य को भी चित्रित किया है। यह खण्ड सात अध्यायों में है इसमें प्रथम अध्याय में महाकाव्य, द्वितीय अध्याय में लघुकाव्य, तृतीय अध्याय में गीति काव्य, चतुर्थ अध्याय में नाट्य साहित्य, पंचम अध्याय में गद्य साहित्य, षष्ठं अध्याय में दर्शन और साहित्य और सप्तमं अध्याय में आधुनिक संस्कृत साहित्य को जैन मनीषियों का योगदान का वर्णन है।

 

अष्टम खण्ड काव्यशास्त्र नाम से है। इस खण्ड़ में काव्यशास्त्र का बीज, काव्यशास्त्र के प्रवर्तक आचार्यों का उल्लेख किया गया है तथा काव्यशास्त्रीय सिद्धान्त का विवेचन किया है। इसमें छन्दों और छन्दग्रन्थों का भी वर्णन है।

 

नवम खण्ड न्याय नाम से है। यह दर्शन विषयक है। इसमें न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग और मीमांसा दर्शन का संक्षिप्त इतिहास एवं परम्पराओं का वर्णन है।

 

दशम खण्ड में वेदान्त विषय का वर्णन है। इस खण्ड़ में यथासम्भव वेदान्त साहित्य का सर्वेक्षण किया गया है। जिसके अन्तर्गत वेदान्त का इतिहास और वेदान्त को एक पूर्ण दर्शन के रूप में दर्शाया गया है।

 

एकादश खण्ड में तन्त्र और आगम का प्रकरण है। इस खण्ड़ में तन्त्र शास्त्रों और आगम शास्त्रों के विशिष्ट स्वरूप का वर्णन किया गया है। दूसरे अध्याय में तंत्र की प्राचीन परम्पराओं का वर्णन है।

 

द्वादश-खंड – इस खण्ड़ में तीन नास्तिक दर्शनों जैन-बौद्ध और चार्वाक मत के दर्शनों का वर्णन किया है।

 

त्रयोदश खण्ड़ पुराण नाम से है। इस खण्ड़ में मुख्यतः पुराणों के काल, पुराणों के लक्षण, साहित्यिक विमर्श, दार्शनिक तत्त्व निरुपण, भाषा, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवम् सामाजिक स्थितियों की समीक्षा की गई है। इस खण्ड़ में महापुराण से लेकर स्थलपुराण एवं माहात्म्य तक का क्रमबध्द इतिहास परक विकास प्रस्तुत किया गया है।

 

चतुर्दश खण्ड़ के पश्चात् पञ्चदश खण्ड व्याकरण नाम से है। इस खण्ड़ में 8 अध्याय है। प्रथम अध्याय में पाणिनी से पूर्व वैयाकरणों का विशद विवेचन हुआ है। द्वितीय अध्याय में पाणिनि द्वारा अनुल्लिखित पूर्वाचार्यों का विशद उल्लेख किया है। तृतीय अध्याय में महर्षि पाणिनि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के साथ ही अष्टाध्यायी पर प्राचीन तथा नवींन वृत्तियों का सविस्तार सर्वेक्षण है। चतुर्थ एवं पञ्चम अध्याय में क्रमशः पतञ्जलि और कात्यायन के मूल ग्रन्थों एवं व्याख्या संपत्ति पर प्रकाश डाला गया है। षष्ठ अध्याय में क्रम प्राप्त अष्टाध्यायी के वृत्तिकारों तथा सप्त अध्याय में क्रमप्राप्त अष्टाध्यायी प्रक्रिया ग्रन्थों का विवरण प्रस्तुत किया है। अष्टमाध्याय में शब्दानुशासन के तात्त्विक विवेचन स्वरूप दर्शन सरणि तथा शाब्दबोध – विचार की सामग्री समाहित है।

 

इस ग्रन्थमाला का षोडश खण्ड ज्योतिष विषयक है। इस खण्ड में तेईस अध्यायों में भारतीय ज्योतिष की प्राचीनता, अरबी और भारतीय ज्योतिष, स्वरविद्या, वास्तुविद्या, सामुद्रिक शास्त्र सहित भारतीय ज्योतिष, स्वरविद्या, वास्तुविद्या, और भारतीय ज्योतिष में जेन परम्परा आदि विषयों का गम्भीरता पूर्वक विचार किया है।

 

इस साहित्य का सप्तदश खंड़ आयुर्वेद का इतिहास नाम से है। इसमें आयुर्वेद के अवतरण से लेकर उसके विकास का क्रमबद्ध दिग्दर्शन प्रस्तुत किया है। इस खण्ड़ में विश्व की ज्वलन्त समस्या पर्यावरण एवं समाज पर आयुर्वेद पर ऐतिहासिक दृष्टिकोण भी प्राप्त होता है।

 

इस प्रकार इस साहित्य में समस्त संस्कृत साहित्य को समावेश करने का एक प्रयास किया गया है। आशा है कि पाठक इससे अवश्य ही लाभान्वित होंगे एवं यह साहित्य संस्कृत के शोधार्थियों को अनेक प्रकार से सहायक सिद्ध होगा।

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